मंगलवार, 1 जुलाई 2008

मोबाइल और इंटरनेट हैं आत्महत्या के कारण

क्या मोबाइल फोन और इंटरनेट आईआईटी छात्रों की आत्महत्या का कारण हैं ? अधिकारियों की माने तो यह सही है। पर इसके और भी कारण हैं। आईआईटी अधिकारी यह नहीं मानते कि पाठ्यक्रम बहुत कठिन है अथवा पढ़ाई का बहुत अधिक दबाव है। उनका कहना है कि आत्महत्या की वजह है अधिक से अधिक पारिवारिक दबाव जो आज के मोबाइल और इंटरनेट के कारण है। यह पहले नहीं था।

सूचना का अधिकार कानून के तहत पूछे गए सवालों के जवाब में आईआईटी ने बताया है कि असली अपराधी मोबाइल है। आज से दस साल पहले मोबाइल फोन का अधिक प्रयोग नहीं होता था। छात्र मोबाइल का प्रयोग न के बराबर करते थे। तब वे अपना ध्यान पढाई पर केंद्रित करते थे। लेकिन आज वे रात-दिन मोबाइल पर ही व्यस्त रहते हैं। परिवार व दोस्तों से मोबाइल संपर्क के कारण वे हमेशा पारिवारिक समस्याओं और तनावों से उलझे रहते हैं। जवाब में आत्महत्या का दूसरा कारण इंटरनेट को बताया गया है। हालांकि, आईआईटी दिल्ली के निदेशक सुरेन्द्र प्रसाद कहते हैं कि जबतक ठोस अध्ययन न हो तब तक उनकी आत्महत्या की वजह को मोबाइल या इंटरनेट से नहीं जोड़ा जा सकता।

आईआईटी एल्यूमनी भारत पुनर्निर्माण दल की तोया चटर्जी ने एक छात्र की आत्महत्या के बाद इस संबंध में 2 जून को आरटीआई के तहत आईआईटी कानपुर से जानकारी मांगी थी। बीते तीन साल में आईआईटी कानपुर के छह छात्रों ने आत्महत्या की है।

आरटीआई के सबसे ज्यादा मामले दिल्ली पुलिस और डीडीए में

दिल्ली में सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत सबसे अधिक आवेदन दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) और दिल्ली पुलिस से संबंधित जानकारियों के लिए जमा किए जा रह हैं। आवेदनों की बड़ी संख्या को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजधानी के लोग डीडीए और दिल्ली पुलिस से कितने नाराज हैं।

आरटीआई के क्षेत्र में काम कर रहे एक गैर सरकारी संगठन `कबीर´ के अनुसार, अक्टूबर 2005 से दिसम्बर 2007 के बीच डीडीए के पास आरटीआई के 12,790 आवेदन पहुंचे। इसी अवधि में दिल्ली पुलिस के पास 12,229 आवेदन पहुंचे। कबीर से जुड़े कार्यकर्ता नीरज कुमार ने बताया, `दिल्ली पुलिस और डीडीए ने आरटीआई के आवेदन सबसे अधिक प्राप्त किए हैं। इससे पता चलता है कि लोगों को यहां से सबसे अधिक समस्याओ का सामना करना पड़ रहा है।´

दिल्ली पुलिस और डीडीए के बाद सबसे अधिक आवेदन प्राप्त करनेवालों में शिक्षा विभाग, खाद्य आपूर्ति व ग्राहक मामलों से संबंधित विभाग, दिल्ली जलबोर्ड और उद्योग आयुक्त कार्यालय है। नीरज बताते हैं, `हमें ये आंकड़े आसानी से प्राप्त नहीं हुए हैं। कई विभागों ने हमें आरटीआई आवेदन के आंकड़े उपलब्ध नहीं कराये।´ आरटीआई के तहत सबसे कम आवेदन चिट फंड विभाग को मिले। (आईएएनएस)

सोमवार, 30 जून 2008

जानकारी न देने पर हुडा पर जुर्माना

हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (हुडा) को प्लॉट के बारे में जानकारी न देना बहुत महंगा पड़ गया है। राज्य सूचना आयोग ने एक आवेदक द्वारा `सूचना का अधिकार´ कानून के तहत मांगी जानकारी को न देने पर हुडा के एस्टेट ऑफिसर - वन को फटकार लगाते हुए उनपर 3000 रुपये का जुर्माना ठोक दिया है। आयोग ने हुडा को आदेश जारी करते हुए 30 जून तक मांगी गयी सूचना उपलब्ध कराने को भी कहा है।

आवेदक विजय रानी गर्ग ने 18 जुलाई 2007 को सूचना का अधिकार कानून के तहत हुडा के एस्टेट ऑफिसर-वन से सेक्टर 12 ए व सेक्टर 6 में खरीदे गये अपने प्लॉट के बारे में जानकारी मांगी थी। लेकिन दर्जनों बार कोशिश करने के बावजूद उन्हें कोई जानकारी नहीं दी गयी। इसके बाद आवेदक ने 25 सितम्बर 2007 को हुडा प्रशासक से अपील की। उन्होंने इस मामले में हुडा के लोक सूचना पदाधिकारी से जानकारी मांगी। सूचना पदाधिकारी ने कुछ जानकारी दी लेकिन वह अधूरी थी। अंत में परेशान होकर आवेदक ने 30 मई 2008 को राज्य आयोग में अपील की। इस कानून के तहत आवेदक को समय पर जानकारी न देने के कारण आयोग ने हुडा के एस्टेट ऑफिसर वन पर 3000 रुपये का जुर्माना लगा दिया। इसके अलावा ऑफिसर को 30 जून तक जानकारी देने को भी कहा है, जिसकी समय सीमा आज पूरी हो गई। अभी पता नहीं चला कि आवेदक को जानकारी मिली है या नहीं।

कुछ अनुभवी लोगों के अनुसार सूचना पदाधिकारी इस कानून के तहत मांगी सूचना की जानकारी तोड़ मरोड़ कर पेश करते हैं, लेकिन फिलहाल इसपर सख्ती नहीं की जा रही है।

शुक्रवार, 20 जून 2008

मालगुजारी की दर तय नहीं है बिहार में

बिहार में एक ओर जहां किसानों की हालत बाढ़ और सूखे के कारण खास्ता रही है, वहीं दूसरी ओर सरकार भी उसे चूसने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती। अब सरकार द्वारा किसानों से वसूली जानेवाली मालगुजारी की बात करें तो सरकार की ओर से अंधेरगर्दी का आलम है। सरकार मौका मिलते ही किसानों से अनाप-शनाप मालगुजारी वसूल रही है।

बिहार में मालगुजारी की दर जमीन की किस्मों के आधार पर 1962 में सर्वे के समय ही तय कर दी गई थी। इस दर को प्रत्येक किसान के खतियानों पर लिख भी दिया गया था। लेकिन कई खतियान ऐसे थे, जिनपर भूलवश यह दर दर्ज नही हो पाई। हालांकि उस खतियान में दर्ज जमीनों जैसी किस्म वाली अन्य आसपास की भूखंडों की दर दूसरे खतियानों पर दर्ज है। लेकिन अब जब बिना दर्ज वाले खतियानों के कास्तकारों ने मालगुजारी अदा करना चाहा तो उनसे मनमानी दर वसूली जा रही है। ऐसा एक वाकया मुजफ्फरपुर के मुशहरी अंचल में सामने आया है।

एक बिना दर दर्ज खतियान पर ब्लॉग लेखक जब 2000 में मालगुजारी अदा करने गया तो उससे आसपास की समान किस्म की जमीन की तय मालगुजारी से चार गुना से अधिक मालगुजारी वसूली गई। पूछने पर अंचल कार्यालय के कर्मचारी ने बताया कि आजकल मालगुजारी की दर काफी बढ गई है इसलिए यही समुचित दर है। मालगुजारी की दर के बारे मे जब `सूचना का अधिकार अधिनियम- 2005´ के तहत 22.11.07 को जानकारी मांगी गई तो अंचल कार्यालय ने अपने पत्रांक 1083 दिनांक 26.12.07 के जवाब में साफ बताया कि मालगुजारी की दर जो खतियानों पर लिखी है, उसी अनुसार वसूली हो रही है। इसमें संशोधन की कोई सूचना कार्यालय को नहीं है। यही सवाल जब राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग, पटना से भी पूछा गया तो उसका जवाब था कि इस तरह की सूचनाएं और उससे संबंधित दस्तावेज अंचल कार्यालय में ही उपलब्ध रहती हैं। विभाग ने यह आवेदन मुशहरी अंचल को ही हस्तांतरित कर दिया।

उधर, मुशहरी अंचल के असंतोषजनक जवाब के बाद प्रथम अपील की गई तो वहां अंचल के लोक सूचना पदाधिकारी तीन तारीखों पर भी उपस्थित नहीं हुए और तब प्रथम अपील प्राधिकारी ने मामले को राज्य आयोग में ले जाने का निर्देश देते हुए इसे बंद कर दिया। इसके बाद मुशहरी के अंचल पदाधिकारी ने पूर्वोक्त जवाब ही अपीलीय प्राधिकारी के यहां जमा करा दिया।

याची इस बारे में मामले को राज्य सूचना आयोग, पटना में अपील में है। आयोग द्वारा इसकी प्रथम सुनवाई की तारीख 3 जुलाई रखी गई है।

शनिवार, 7 जून 2008

माफी के बाद भी बिहार में मालगुजारी वसूली

बिहार के एक अंचल में गरीब किसानों से बेवजह मालगुजारी वसूली जा रही है। राज्य में सीमांत किसानों की बड़ी संख्या है और उनके लिए मालगुजारी माफी का आंदोलन दशको तक चलता रहा। इसके बाद सरकार ने मालगुजारी माफी का ऐलान भी कर दिया। लेकिन वसूलनेवाली इकाई को शायद यह जानकारी नहीं है। वह ऐसे गरीब किसानों से भी पूरी मालगुजारी वसूल रही है। यह खुलासा सूचना का अधिकार अधिनियम- 2005 (आरटीआई) के तहत मांगी गयी जानकारी में हुआ है। अगर पूरे बिहार में यही हाल है तो इस वसूली की राशि सालाना लाखों में हो सकती है। यहां एक अंचल का तो साक्ष्य मौजूद है लेकिन लगता है पूरे बिहार में एक जैसी ही स्थिति है।

बिहार में इस समय 38 जिले, 101 सब डिवीजन और 534 अंचलों के अंचल सह ब्लॉक के अंतर्गत 45,103 राजस्व ग्राम है। प्रदेश का राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग इस बात को स्वीकार करता है कि राज्य के 2 हेक्टेयर से कम जमीन जोतनेवाले किसानों की मालगुजारी माफ की गयी है। लेकिन राज्य का ही एक अंचल इस बात की जानकारी होने से इनकार करता है। बिहार में कृषि भूमि की मालगुजारी अंचल कार्यालय द्वारा ही वसूली जाती है। आरटीआई के तहत मुजफ्फरपुर जिले के मुशहरी अंचल कार्यालय से आईडी संख्या 22 दिनांक 26।11.2007 को मांगी गयी सूचना कि `कितनी जोत सीमा तक मालगुजारी माफ है और मालगुजारी कितने एकड़ के बाद लागू हो जाती है ?´ के जवाब में पत्रांक 1083 दिनांक 26.12.07 को दी गयी जानकारी में कहा गया है कि `मालगुंजारी माफी संबंधी कोई सूचना अभिलेख में उपलब्ध नहीं है।´

लेकिन इसी कानून के तहत राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग, मुख्य सचिवालय, पटना से मांगी गयी सूचना कि `कितनी जोत सीमा तक मालगुजारी माफ है और कितनी ?´ के जवाब में लोक सूचना पदाधिकारी सह उप सचिव राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग, पटना ने पत्र संख्या - सू।अ.को.रा.भू.- 31/08 1244 (सू.अ.)/ रा. के तहत जवाब दिया है कि `घ. राजस्व विभागीय पत्रांक- 415 दिनांक 16.6.2000 के अनुसार दो हेक्टेयर तक कृषि प्रयोजनादि भूमि पर मालगुजारी माफ है, लेकिन उसपर लगने वाले सेसे की वसूली जारी रहेगी´। यहां सेस कौन कहे, पूरी की पूरी मालगुजारी वसूली जा रही है। इस बारे में पूरे बिहार के सभी अंचलों से तहकीकात किए जाने की जरूरत है कि आखिर यह पैसा किस नियम के तहत वर्षों से राजकोष में जमा हो रहा है। और इसका कोई ऑडिट भी नहीं हो रहा है।
हिन्दुस्तान