सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) का जब हिंदी में अनुवाद हुआ तो उसमें कई गलतियां रह गयीं थी। एक आरटीआई कार्यकर्ता ने इन अशुदि्धयों को दूर कराने के लिए कोशिश शुरू की और 14 महीने बाद आखिर उसकी कोशिश रंग लायी हैं। कार्मिक एवं प्रशिक्शन विभाग ने इन अशुदि्धयों को दूर कर दिया गया है।
विधि मंत्रालय ने अधिनियम के हिंदी रूपांतरण में 34 बदलावों को शामिल किया है। इसे जल्द ही मंत्रालय के साथ-साथ कार्मिक विभाग की वेबसाइट पर प्रकाशित कर दिया जाएगा। विभाग के निदेशक के.जी. वर्मा ने बताया कि विधि मंत्रालय ने शुदि्धपत्र तैयार कर लिया है। आरटीआई अधिनियम के मूल अंग्रेजी संस्करण में पब्लिक अथॉरिटी को ऐसे किसी प्राधिकार, निकाय या संस्थान के तौर पर परिभाशित किया गया है जो केंद्र और राज्य सरकारों के तहत आता है। वहीं हिन्दी अनुवाद में इसे केंद्र के स्वामित्व, नियंत्रण या वित्तपोषण वाले निकाय के तौर पर परिभाषित किया गया है। इसने राज्य सरकार के अधिकारियों को सूचना न देने का बहाना दे दिया था।
इसके अतिरिक्त भी हिन्दी संस्करण में कई त्रुटियां थीं। पिछले साल अप्रैल में सेवानिवृत्त कोमोडोर लोकेश बत्रा ने इस ओर ध्यान दिलाया था। बत्रा ने प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ-साथ मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला को इस मुद्दे पर पत्र लिखा। जब उनके आवेदन पर कोई जवाब नहीं मिला तो उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय में आरटीआई आवेदन दाखिल किया और अपनी शिकायत पर की गयी कार्रवाई का विवरण मांगा। पीएमओ के जवाब से असंतुष्ट बत्रा ने केंद्रीय सूचना आयोग में अपील की। इस पर प्रधानमंत्री कार्यालय के मुख्य सूचना अधिकारी ने कहा कि उन्होंने इस मुद्दे पर डीओपीटी को पत्र लिखा है।
पत्र तो लिखा गया लेकिन एक साल तक आवेदन ऐसे ही फाइलों में पड़ा रहा और ठोस कार्रवाई नहीं की गयी। बत्रा ने अबकी जून में डीओपीटी में आरटीआई दाखिल कर कार्रवाई के बारे में पूछा। इस आवेदन के बाद गेंद इधर-उधर घूमने लगा और आखिरकार विधि मंत्रालय ने इसमें संशोधन कर दिया।