मंगलवार, 26 मई 2009

प्रधानमंत्री के लिए निजी डॉक्टर क्यों

कभी समाजवादी नेता डा। राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि उन्हें भी वही सुविधा चाहिए जो आम आदमी को मयस्सर है। अपनी इसी नीति के कारण उन्होंने सरकारी अस्पताल में इलाज करवाया और इसी दौरान डॉक्टरों की कुछ गलती से उनकी मौत भी हो गयी। उनका अंतिम संस्कार भी उनकी इच्छानुसार विद्युत शवदाह गृह में ही किया गया ताकि कोई तामझाम न हो और न ही कोई स्मारक बने। दिल्ली में नेताओं के लिए अंत्येष्टि स्थलों की भव्यता देख कर ही लोहिया ने कहा था कि ऐसा रहा तो एक दिन दिल्ली श्मशानों की नगरी बन जाएगी।

लेकिन उनके बाद भी वह परंपरा कायम रही और तमाम बड़े नेताओं के मरने के बाद उनके नाम पर कई-कई एकड़ों में समाधि स्थल बनाए गए। सत्ताधारी पार्टी के नेता तो नजला जुकाम होने पर विदेश इलाज के लिए दौड़ते ही थे, सत्ता में आने या करीब पहुंचने पर लोहिया की धारा के और दूसरे विपक्षी नेता भी अमेरिका की दौड़ इलाज के लिए लगाने लगे। इतना ही नहीं अगर नेताओं का इलाज देश में भी हो रहा हो तो स्पेशल तौर पर देश- विदेश से निजी डॉक्टर बुलाने की अपसंस्कृति भी विकसित हुई। अटल जी के घुटने का ऑपरेशन हुआ तो अमेरिका से डॉक्टर आए तो वर्तमान प्रधानमंत्री डॉ। मनमोहन सिंह की बाईपास सर्जरी के लिए भी निजी डॉक्टर बुलाए गए।

इस पर एक आरटीआई आवेदक जगदीश चंदर जेटली ने सूचना का अधिकार कानून के तहत जानकारी मांगी कि प्रधानमंत्री की सर्जरी निजी डॉक्टर डॉ। रमाकांत पांडा और एशियन हार्ट इंस्टीट्यूट की उनकी टीम से क्यों करायी गयी, जबकि एम्स के पास इसकी सारी सुविधाएं और विशेशज्ञता उपलब्ध है। इसपर एम्स का जवाब टालमटोल का रहा। तब आवेदक केंद्रीय सूचना आयोग में अपील मे आए। डॉ. सिंह की इसी साल 24 जनवरी को एम्स में कोरोनरी आर्टरी बाइपास सर्जरी हुई है।

दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद सूचना आयुक्त् अन्नपूर्णा दीक्षित ने पूछा कि डॉ। पांडा को सर्जरी करने के लिए बुलाने के फैसले पर कैसे पहुंचा गया और इसके क्या कारण थे ? अगर इस संबंध में कोई बैठक हुई तो उस बारे में भी 20 जून तक आवेदक को जानकारी मुहैया करायी जाए।

जेटली ने सीआईसी में दलील दी कि एम्स ने जानकारी दी थी कि प्रधानमंत्री की जिस तरह की सर्जरी की गयी उसकी विशेशज्ञता उसके पास है। फिर डॉ। पांडा की विशेषज्ञता के बारे में एम्स को कोई जानकारी भी नहीं है। जेटली ने आरोप लगाया कि यह अकल्पनीय है कि एम्स ने डॉ. पांडा की विशेषज्ञता जाने बगैर प्रधानमंत्री का आपरेशन करने की उन्हें इजाजत दे दी।

हालांकि एम्स का पक्ष था कि निजी डॉक्टर बुलाने का उसके यहां कोई खास नियम नहीं है। नियम में कहा गया है कि मरीज के हित में संस्थान मे निदेशक कोई भी प्रशासनिक निर्णय लेने में सक्षम है। लेकिन क्या यह भी जानने लायक बात नहीं है कि एम्स सामान्य मरीजों के लिए भी ऐसे निर्णय लेता है ?

साली का ब्यौरा आरटीआई से, कितना उचित

सूचना का अधिकार कानून तमाम सकारात्मक पहलुओं के साथ कुछ गलत कामों का भी जरिया बन गया है। मसलन, इस कानून का उपयोग कर अब लोग निजी खुन्नस निकालने लगे हैं। यह कहना है केंद्रीय सूचना आयुक्त एम।एम. अंसारी का। हालांकि इसमें जो उदाहरण आयोग ने दिया है, वह किसी भी तरह से निजी नहीं है बल्कि सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता से जुड़ा है, जिसे प्रोत्साहित करने के लिए यह कानून बनाया गया था, लेकिन इसका उद्देश्य निजी ही है। ऐसे मामलों को किस तरह से निपटाया जाए, यह एक ज्वलंत सवाल है।

अंसारी ने ऐसे ही एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि इस कानून का दुरुपयोग पारिवारिक झगड़े या निजी खुन्नस निकालने में व्यापक पैमाने पर किया जा रहा है। इनमें तलाक और हर्जाने के दावे जैसे मामले भी हैं। घटना के अनुसार, दिल्ली के आई।पी. अग्रवाल ने वाणिज्य विभाग में कार्यरत अपनी साली के वैयक्तिक और सरकारी ब्यौरे की सूचना मांगी। दरअसल अग्रवाल का अपनी पत्नी से झगड़ा चल रहा है और इसी परिप्रेक्ष्य में उन्होंने साली की सूचना मांगी है। विभाग ने यह कहते हुए सूचना देने से इनकार कर दिया कि यह सूचना निहायत ही निजी है। हालांकि अंसारी ने भी विभाग के नजरिए से सहमति जतायी लेकिन यह भी कहा कि इसे रोकना असंभव है।

यहां सवाल यह है कि अग्रवाल की साली के सरकारी ब्यौरे भी सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता से जुड़े ही माने जाएंगे। लेकिन ऐसे मामलों में फर्क कैसे किया जा सकता है कि सूचना मांगने वाला निजी खुन्नस निकालने के लिए मांग रहा है या पारदर्शिता सार्वजनिक करने के तहत। कुछ भी अगर एक मामले में सूचना आयोग व्यक्तिगत गुण-दोश के आधार पर इस तरह की सूचना दिलवाने से रोकेगा तो यह उन मामलों में नजीर के तौर पर पेश किया जाएगा जहां सार्वजनिक तौर पर पारदर्शिता के लिए सूचना सार्वजनिक करना अति आवश्यक भी होगा। इसलिए इस मामले में अग्रवाल की साली से संबंधित सरकारी ब्यौरे को सार्वजनिक किया जाए और निजी ब्यौरा देने से इनकार कर दिया जाए.

सोमवार, 25 मई 2009

काले धन पर आडवाणी से सीआईसी ने मांगी सफाई

केन्द्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने लोकसभा में नेता विपक्ष लालकृश्ण आडवाणी के कार्यालय को उन कारणों को बताने का निर्देश दिया है, जिसके चलते वह स्विस बैंक में भारतीय काले धन के संबंध में श्री आडवाणी, प्रधानमंत्री डॉ। मनमोहन सिंह और केंद्रीय वित्तमंत्री के बीच हुई खतो-किताबत की जानकारी देने से इंकार कर दिया है।

सीआईसी के उप सचिव पंकज श्रेयस्कर ने जन सूचना अधिकारी सुभाष अग्रवाल की शि़कायत पर जन सूचना आयुक्त को लिखा, `आयोग आपको निर्देश देता है कि इस िशकायत पर टिप्पणी करें ... सूचना उपलब्ध नहीं कराने की वजह को स्पष्ट रूप से बताएं। अग्रवाल ने नेता विपक्ष के कार्यालय में आरटीआई के तहत आवेदन देकर पूर्व गृहमंत्री व उप प्रधानमंत्री रह चुके आडवाणी द्वारा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखे पत्र और उस पर वित्तमंत्री के जवाब की विस्तृत जानकारी मांगी।

आवेदक ने स्विस बैंकों में भारतीयों के जमा काले धन के संबंध में उन पत्रों और उनके उत्तर, फाइल टिप्पणियों और इस मुद्दे से जुड़े सभी दस्तावेजों की प्रतियों की मांग की थी। विपक्ष के नेता के कार्यालय की ओर से अग्रवाल को कोई जवाब नहीं दिए जाने पर उन्होंने केंद्रीय सूचना आयोग से िशकायत की। यह मामला चुनाव पूर्व प्रचार अभियान के दौरान सामने आया जब भाजपा नेता ने स्विस बैंकों में जमा काले धन को वापस लाने के प्रयास करने का वादा किया।