मंगलवार, 26 मई 2009

साली का ब्यौरा आरटीआई से, कितना उचित

सूचना का अधिकार कानून तमाम सकारात्मक पहलुओं के साथ कुछ गलत कामों का भी जरिया बन गया है। मसलन, इस कानून का उपयोग कर अब लोग निजी खुन्नस निकालने लगे हैं। यह कहना है केंद्रीय सूचना आयुक्त एम।एम. अंसारी का। हालांकि इसमें जो उदाहरण आयोग ने दिया है, वह किसी भी तरह से निजी नहीं है बल्कि सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता से जुड़ा है, जिसे प्रोत्साहित करने के लिए यह कानून बनाया गया था, लेकिन इसका उद्देश्य निजी ही है। ऐसे मामलों को किस तरह से निपटाया जाए, यह एक ज्वलंत सवाल है।

अंसारी ने ऐसे ही एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि इस कानून का दुरुपयोग पारिवारिक झगड़े या निजी खुन्नस निकालने में व्यापक पैमाने पर किया जा रहा है। इनमें तलाक और हर्जाने के दावे जैसे मामले भी हैं। घटना के अनुसार, दिल्ली के आई।पी. अग्रवाल ने वाणिज्य विभाग में कार्यरत अपनी साली के वैयक्तिक और सरकारी ब्यौरे की सूचना मांगी। दरअसल अग्रवाल का अपनी पत्नी से झगड़ा चल रहा है और इसी परिप्रेक्ष्य में उन्होंने साली की सूचना मांगी है। विभाग ने यह कहते हुए सूचना देने से इनकार कर दिया कि यह सूचना निहायत ही निजी है। हालांकि अंसारी ने भी विभाग के नजरिए से सहमति जतायी लेकिन यह भी कहा कि इसे रोकना असंभव है।

यहां सवाल यह है कि अग्रवाल की साली के सरकारी ब्यौरे भी सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता से जुड़े ही माने जाएंगे। लेकिन ऐसे मामलों में फर्क कैसे किया जा सकता है कि सूचना मांगने वाला निजी खुन्नस निकालने के लिए मांग रहा है या पारदर्शिता सार्वजनिक करने के तहत। कुछ भी अगर एक मामले में सूचना आयोग व्यक्तिगत गुण-दोश के आधार पर इस तरह की सूचना दिलवाने से रोकेगा तो यह उन मामलों में नजीर के तौर पर पेश किया जाएगा जहां सार्वजनिक तौर पर पारदर्शिता के लिए सूचना सार्वजनिक करना अति आवश्यक भी होगा। इसलिए इस मामले में अग्रवाल की साली से संबंधित सरकारी ब्यौरे को सार्वजनिक किया जाए और निजी ब्यौरा देने से इनकार कर दिया जाए.

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

ये तो होना ही था।

रंजन ने कहा…

कानुन का दुरपयोग हमारे देश में काफी आप है.. समाधान ढु्ढे तो बात बने..

(काले background पर पीले फोन्ट आँखो पर काफी stress डाल रहे है.. हो सके तो टेम्पलेट में कुछ परिवर्तन करें)